Name | Lakhnavi Andaaz |
Type | Summary |
Class | 10 |
Board | CBSE Board |
लखनवी अंदाज़ सारांश
लखनवी अंदाज़ कहानी की शुरुआत कुछ इस तरह होती है। लेखक को अपने घर से थोड़ी दूर कहीं जाना था।
लेखक ने भीड़ से बचने,एकांत में किसी नई कहानी के बारे में सोचने व ट्रैन की खिड़की से बहार के प्राकर्तिक द्रिशयो को निहारने के लिए लोकल ट्रैन (मुफस्सिल)के सेकंड क्लास का कुछ मेहेंगा टिकट खरीद लिया।
जब वो स्टेशन पहुंचे तो गाड़ी छूटने ही वाली थी। इसलिए वो सेकंड क्लास के एक छोटे डब्बे को खली समझकर उसमे चढ़ गए। लेकिन जिस डिब्बे को वो खली समझकर चढ़े थे,वहाँ पहले से ही लखनवी नवाब बहुत आराम से पालथी मारकर बैठे हुए थे और उनके सामने तो ताज़े खीरे एक तौलिये के ऊपर रखे हुए थे।
लेखक को देख नवाब साहब बिल्कुल भी खुश नहीं हुए क्यूंकि उन्हें अपना एकांत भांग होता हुआ दिखाई दिया।
उन्होंने लेखक से बात करने में भी कोई उत्साह या रुचि नहीं दिखाई। लेखक उनके सामने वाली सीट में बैठ गए।
लेखक खाली बैठे थे और कल्पना करने की उनकी पुरानी आदत थी. इसलिए वो उनके आने से नवाब साहब को होने वाली असुविधा का अनुमान लगाने लगे।
वो सोच रहे थे की शायद नवाब साहब ने अकेले सुकून से यात्रा करने की ीचा से सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा।
लेकिन अब उनको यह देखकर बिलकुल भी ाचा नहीं लग रहा है कि शहर का कोई सफेदपोश व्यक्ति उन्हें सेकंड क्लास में सफर करते देखे।
उन्होंने सफर में वक्त अचे से काट जाये यही सोचकर दो खीरे खरीदे होंगे। परन्तु अब किसी सफेदपोश आदमी के सामने खीरा कैसे खाये।
नवाब साहब गाडी की खिड़की से लगातार बहार देख रहे थे और लेखक कनखियों से नवाब साहब की और देख रहे थे।
अचानक नवाब साहब ने लेखक से खीरा खाने के लिए पूछा लेकिन लेखक ने नवाब साहब को शुक्रिया करते हुए मन कर दिया।
थोड़ी देर बाद नवाब साहब ने बहुत तरीके से खीरो को धोया और उसे छोटे-छोटे टुकड़ो में कटा। फिर उसमें जीरा लगा नमक,मिर्च लगा कर उनको तौलिये में सजाया।
इसके बाद नवाब साहब ने एक और बार लेखक से खीरे के बारे में पूछा। क्यूंकि लेखक पहले ही खीरा खाने से मन कर चुके थे। इसलिए उन्होंने अपना आत्मा सम्मान बनाये रखने के लिए इस बार पेट ख़राब होने का बहाना बनाकर खीरा खाने से इंकार कर दिया।
लेखक के मन करने के बाद नवाब साहब ने नमक मिर्ची लगे उन खीरे के टुकड़ो को देखा, फिर खिड़की के बहार देखकर एक गहरी सांस ली।
उसके बाड़नेवाब साहब खीरे की एक फांक को उठाकर होंठो तक ले गए,फांक को सूंघा। स्वाद के आनंद में नवाब साहब के पलके मूँद गयी। और फिर नवाब साहब ने खीरे के उस टुकड़े को खिड़की से बहार फेंक दिया।
इसी प्रकार नवाब साहब खीरे के हर टुकड़े को होंठो के पास ले जाते,फिर उसको सूंघते और उसके बाद खिड़की से बहार फेंक देते।
खीरे के सारे टुकड़ो को बहार फेंकने के बाद उन्होंने आराम से तौलिये से हाथ और होंठो को पोछा और फिर बड़े गर्व से लेखक को कहना छह रहे हो की “यही है खानदानी रहीसों का तरीका’।
नवाब साहब खीरे की तैयारी और इस्तेमाल से थक कर लेट गए। लेखक ने सोचा की “क्या सिर्फ खीरे को सूंघ कर ही पेट भरा जा सकता है”।
तभी नवाब साहब ने एक जोरदार डकार ली और बोले”खीरा लजीज़ होता है पर पेट पर भोज दाल देता है”। यह सुनकर लेखक के ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्होंने सोचा की जब खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से ही पेट भर कर डकार आ सकता है,तो बिना किसी विचार,घटना,कथावस्तु और पात्रों के,सिर्फ लेखक की इच्छा मात्र से नई कहानी भी तो लिखी जा सकती है।