Name | Kanyadan |
Type | Summary |
Class | 10 |
Board | CBSE Board |
कविता में उस समय का वर्णन है,जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है।अपनी बेटी का दान करते समय माँ को ऐसा लग रहा है,जैसे वह उनकी अंतिम व एकमात्र पूंजी थी। माता-पिता ने उसे बड़े प्यार से पाल-पोस कर बड़ा किया था और अब वह दूसरे घर का सदस्य बनने है। लड़की अभी पूरी तरह से सयानी नहीं हुई थी। वह इतनी भोली और सरल थी कि उसे संसार के सुखों का आभास तो था लेकिन जीवन में आने वाली परेशानियों के बारे में नहीं पता था। उसे जीवन में आने वाले समय की धुंधले प्रकाश की तरह कुछ-कुछ समझ थी। वह तो बस अभी तक जीवन की मधुर कल्पनाओ में ही खोयी हुई थी। एक परम्परावादी माँ से अलग,उसकी माँ ने विदा करते समय उसे समझाया कि वह अपने रूप पर न ही वस्त्र-आभूषणों के प्रलोभन में आये,क्यूंकि ये सभी सांसारिक भ्रम है। एक जादूगर की तरह अपनी ओर आकर्षित करते है आग पर भोजन पकाया जाता है,जल कर मारा नहीं जाता।
जीवन की वास्तविकताओं को समझे,जीवन में आने वाले कष्टों का सामना करें। नारी के सभी स्वाभाविक गुण अपनाये लेकिन एक नाजुक लड़की की तरह भोली न बानी रहे। कठिनाइयों का सामना करे तथा किसी को भी अपना शोषण न करने दे।
अर्थात लड़की होने लेकिन लड़की जैसे दिखाई मत देना।