Question 1: सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई ए दिति है वह उनकी किस मनसिकता को दर्शाती है?
Answer: सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता और बदहवासी दिखाई देती है, इससे उनकी गुलाम मानसिकता का बोध होता है। इससे पता चलता है की वह आजाद होकर भी अंग्रेज़ो के गुलाम हैं। उन्हें अपने उस अतिथि की नाक बहुत मुल्यवन प्रतीत होती है जिसने भारत को गुलाम बनाया और अपमनित किया।
वे नहीं चाहते की वे जॉर्ज पंचम जैसे लोगों के कारनामो को उजागर करके अपनी नारजगी प्राकट करे। वे उन्हें अब भी सम्मान देकर अपनी गुलामी पर मोहर लगाये रखना चाहते हैं।
इस पाठ में “अतिथि देवो भव” की परंपरा पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है। लेखक कहना चाहते हैं की अतिथि का सम्मान करना ठीक है, किन्तु वह अपनी सम्मान की किमत पर नहीं होना चाहिए।
Question 2: रानी एलिजाबेथ के दरजी को परशानी का क्या कारण था? उसकी परशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएंगे?
Answer: दरजी रानी एलिजाबेथ के दौरे से परिचित था। रानी पाक, भारत, और नेपाल का दौरा करेंगी,तो उस देश के अनुकूल वेश धारण करेंगी। दरजी परेशान था की कौन-कौन से देश में कैसी ड्रेस पहनेंगी? इस बात की दर्ज़ी को कोई जानकारी नहीं थी, ना कोई निर्देश था।
उसकी चिंता अवश्य ही विचारणीय थी। प्रशंसा की कामना हर व्यक्ति को होती है। उसका सोचना था जितना अच्छा वेश होगा उतनी ही मेरी ख्याति होगी। इस तरह उसकी चिंता उचित थी।
Question: “और देखते ही देखते नई दिल्ली का काया पलट होने लगा”-नई दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किये गए होंगे?
Answer: नई दिल्ली के कायापलट के लिए सबसे पहले गन्दगी के ढेरों को हटाया गया होगा। सड़को, सरकारी इमारतों और पर्यटक-स्थलों को रंगा-पोता और सजाया-संवारा गया होगा। उन पर बिजलियों का प्रकाश किया गया होगा। सदा से बंद पड़े फवारे चलाये गए होंगे। भीड़भाड़ वाली जगहों पर ट्रैफिक पुलिस का विशेष प्रबंध किया गया होगा।
Question 3: आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान सम्बन्धी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा है-
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपका क्या विचार है?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता में आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है?
Answer: (क) आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे, खान-पान सम्बन्धी को व्यर्थ ही वार्ना करने का दौर चल पड़ा है, इससे जान-सम्मान की आदतों में भी परिवर्तन आ गया है। इस प्रकार की पत्रकारिता के प्रति मेरे विचार है की-
- इस तरह की बातो को इकठ्ठा करना और बार-बार दोहरा के महत्वपूर्ण बना देना पत्रकारिता का प्रशंसनीय कार्य नहीं है।
- पत्रकारिता में ऐसे व्यक्तियों के चरित्र को भी महत्व दे दिया जाता है, जो अपने चरित्र पर तो कभी खरे उतरने नहीं है,पर चर्चा में बने रहने के कारण असहज कार्य कार्य करते है जो पत्रों में च जाते है।
(ख) चर्चित व्यक्तित्व को पुनः पुनः की व्यर्थ चर्चाये युवा पीढ़ी पर बुरा प्रभाव डालती है। उन चर्चित व्यक्तिओ की नक़ल करने का प्रयास,उन्ही की संस्कृति में जीने की बढ़ती हुई इच्छाएं युवा पीढ़ी के मन में बलवती रूप धारण कर लेती है। जिससे उनके ऊपर दुष्प्रभाव पड़े बिना रहता है। आने सामाजिक व्यवहार और लक्ष्य को भूल व्यर्थ की सजावट में समय और धन कर्कश करने लगती है।
Question 4: जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए?
Answer: मूर्तिकार के द्वारा किये गए यत्न निम्नलिखित है-
(क) सर्वप्रथम मूर्तिकार ने मूर्ति के पत्थर की खोज के लिए सारे हिंदुस्तान का भ्रमण किया।
(ख) उसने देश में लगे छोटे-बड़े नेताओ की मूर्तिनाक से पंचम की लात का मिलान किया ताकि उस मूर्ति से नाक निकालकर पंचम लात पर लगायी जा सके।
(ग) आखिर जब उसे नाक नहीं मिली तो उसने जिन्दा इंसान की नाक लगवाने का परामर्श दिया और प्रयत्न भी किया।
Question 5: “नई दिल्ली में सब था…सिर्फ नाक नहीं थी “ इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता है?
Answer: नई दिल्ली में सब था, सिर्फ नाक नहीं थी- यह कहकर लेखक स्पष्ट करना चाहते है की भारत के स्वतंत्र होने पर वह सर्वथा हो चुका था,कहीं भी विपन्नता नहीं थी। अभाव था तो केवल आत्मसम्मान का,स्वाभिमान का। संपन्न होने पर भी देश परतंत्रता की मानसिकता का भाव उत्पन्न होता था की ये हमारे शासक रहे है। गुलामी का कलंक हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा है। इसलिए लेखक कहता है कि दिल्ली में सिर्फ नाक नहीं भी।
Question 6: जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के अखबार चुप क्यों थे?
Answer: अखबार भी सत्य जानते थे परन्तु कुछ बोले नहीं। पत्रकार का काम है की गलत काम के खिलाफ आवाज़ उठाये। वे इतना शर्मिंदा हो गए थे की इसको कैसे बताया जाये लोगो को। उन्होंने अपना विरोध दिखाने के लिए अखबार में कुछ नहीं छपा। अखबार वालों को सरकार के खिलाफ जाने का भी डर था। उन्हें अपनी नाक काटने की भी भय था परन्तु मौन रहकर भी वे इसका विरोध कर दिए थे।